साईकिल से लदाख का एक यादगार सफ़र । यात्रा वृतान्त ।यात्रा दुनिया में खोज, सीखने और प्रत्येक नए अनुभव के साथ जीवन में बढ़ने का एक रोमांचक तरीका है। यह हमारे लिए नए क्षितिज खोलता है, अज्ञात और अस्पष्टीकृत क्षेत्रों, लोगों और उनकी संस्कृतियों के बारे में हमारे बहुत सारे संदेह और भय मिटाता है। मुझे यात्रा करने का बहुत शौक़ है और शुरुआती दो तीन यात्राओं के बाद मैंने अकेले साईकिल पर घुमना शुरू कर दिया। साइकिल पर यात्रा करने से मुझे धैर्य और साहस के साथ यात्रा करने, स्थानीय लोगों से मिलने और उनकी जीवन शैली और संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। साईकिल पर मेरी पहली यात्रा कसोल से लदाख की बेहद रोमांचक यात्रा थी, इस यात्रा को शुरू करने से एक महीने पहले ही लद्दाख में साइकिल चलाने का यह रोमांचक विचार मेरे मन में पागलपन की तरह आया था और इस सपने को देखने और इसे जीने के बीच का एक महीना शायद मेरे जीवन का सबसे बेचैन करने वाला था। पहली बात जो मेरे साथ हुई और सबसे अधिक संभावना आपके साथ होगी, वह यह है कि आपके आस-पास बहुत सारे लोग होंगे जो आपसे इस खतरनाक विचार पर पुनर्विचार करने के लिए कहेंगे और कुछ आपको जाने के लिए हतोत्साहित करने की कोशिश भी करेंगे लेकिन एक बात याद रखें कि आपके पास केवल यही एक जीवन है जो आपको मिला है और आप अपने सपनों को स्थगित करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं सिर्फ़ इसलिए कि कोई और आपके साहस से डरता है। मेरा मानना है कि ज़रूरी नहीं के आपके सपने हर किसी के समझ में आएँ और आने भी नहीं चाहिए।प्रेरणा और भय दोनों आपके अंदर रहते हैं और दोनों ही आपके ऊपर हावी होने की कोशिश करते है लेकिन यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किसके साथ जाते हैं।

तो अब चलते हैं लदाख की यात्रा पर।मनाली से लेह तक 474 किलोमीटर का एक लंबा बेहद ख़ूबसूरत राजमार्ग है। इस पूरे रास्ते में आश्चर्यजनक रूप से साहसिक परिस्थितियों के लिए इसे ‘बाइकर का स्वर्ग’ कहा जाता है। इसमें पाँच ऊंचे दर्रे, चारों और बर्फ़ से ढका बारालाचा दर्रा, प्रसिद्ध गाता लूप और रास्ते में मूर के मैदान (More Plains) यात्रियों को मंत्रमुग्ध करते हैं। हर साल सैकड़ों बाइकर्स और कई साइकिल चालक अपने सपने को जीने के लिए इस सड़क के रास्ते से लद्दाख जाते हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से थ्री इडियट्स की रिलीज़ के बाद, लद्दाख कई यात्रियों के लिए एक यादगार एहसास की तरह बन गया है।ऊंचे पहाड़, विशाल मैदान, खूबसूरत झीलें, और सदियों पुराने मठ और संस्कृति गर्मियों के दौरान दुनिया भर से यात्रियों को आकर्षित करते हैं।

मैंने दो बार (2017 और 2019 में) साइकिल पर लद्दाख का दौरा किया है और दोनों अवसरों पर मैंने सभी चुनौतियों और थकावट भरी सवारी के बावजूद अपनी यात्रा का आनंद लिया। मनाली-लेह मार्ग भारी बर्फबारी के कारण अक्टूबर से मई तक बंद रहता है और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से मंजूरी के बाद मई के अंतिम सप्ताह या कभी-कभी जून के पहले सप्ताह में पर्यटकों के लिए खुलता है। जून का पहला पखवाड़ा सड़कों पर भारी बर्फ और मौसम के उतार-चढ़ाव की वजह से अभी भी थोड़ा जोखिम भरा या रोमांचक होता है। जून से सितम्बर तक ये चार महीने बाइकर्स और अन्य यात्रियों के लिए सबसे अच्छा और व्यस्त समय होता है जो मनाली के रास्ते लद्दाख जाते हैं।

सफ़र शुरू करने से पहले कुछ ज़रूरी बातें अगर आप भी इस यात्रा पर जाना चाहते हैं ।लद्दाख के लिए एक साइकिल यात्रा की योजना बनाते समय आपको दो सबसे महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करना होगा जो कि सड़क की स्थिति और मौसम हैं। इनके हालात के अनुरूप ही आपकी यात्रा चलती है। दूसरा ये कि कई लोग परमिट के बारे में चिंतित और भ्रमित हो जाते हैं, लेकिन मैं यह स्पष्ट कर दूं कि आपको मनाली से लेह साइकिल यात्रा के लिए किसी भी तरह के परमिट की आवश्यकता नहीं होती है।रास्ते और मौसम की हालत देखते हुए कुछ ज़रूरी चीज़ें जो आपको अपने साथ रखनी चाहिए वो है:-
• एक हल्के विण्ड और रैन जैकेट, 2 गर्म बनियान, एक गर्म जैकेट, 2 जोड़ी ऊनी मोजे ले जाएं
• 2-3 अतिरिक्त ब्रेक की तार, 1 ट्यूब, 1 हवा भरने का पंप, एक छोटी सी पंचर किट, L- कीज़ और गर्म हाथ के दस्ताने ले जाएं
• आप कुछ ड्राई फ्रूट, स्वीट चॉकलेट और टॉफी ले सकते हैं
• धूप का चश्मा, लिप गार्ड, चेहरे के लिए सनस्क्रीन
• एक छोटी प्राथमिक चिकित्सा किट और इसमें ऊँचाई की बीमारी (High Altitude Sickness)की गोलियाँ होनी चाहिए
अपने साथ ज़्यादा कपड़े,कोई भी अनावश्यक चीज़ या सामान न रखें, कुछ दिनों के लिए कम से कम सिर्फ़ ज़रूरी सामान पर निर्भर रहने की कोशिश करें क्योंकि आपकी साइकिल पर जितना संभव हो उतना कम भार उठाना बेहतर होगा क्योंकि आप हिमालय में एक लंबी यात्रा पर जा रहे हैं ।सबसे अच्छा होगा यदि आप अपना सामान का वजन 20 किलोग्राम से कम कर सकते हैं। चूंकि आपको पांच उच्च मार्गों को पार करना है, इसलिए आपको ठंड के मौसम में ऊंचाई पर एक अत्यंत कठिन और थकाऊ सवारी के लिए मानसिक रूप से भी तैयार होना होगा। यदि आपको सांस लेने और श्वसन प्रणाली से संबंधित कोई भी स्वास्थ्य समस्या है तो यह सलाह दी जाती है कि आप इस यात्रा पर साइकिल से न जाएँ। अगर आप सामान्य भी हैं, तो भी आपको ऊँचाई में साईकिल चलाना मुश्किल होगा इसलिए पानी और मिठा आपको ऊंचाई पर हाइड्रेटेड रखेंगे। ऊर्जा बचाने के लिए ऊपर की ओर चढ़ते समय निचले गियर में साइकिल की सवारी करें। बारालाचा और तांगलांग ला में कभी भी आपको अचानक बारिश, बर्फबारी या खराब मौसम का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए अपने साथ बारिश और हवा की जैकेट ले जाना बेहतर है। यदि आप इन ऊँचे मार्गों पर खराब मौसम का सामना करते हैं, तो कभी भी रुकें नहीं या मौसम के साफ होने का इंतजार ना करें और जिस दिशा में आप जा रहे हैं, उस दिशा में चलते रहें और दर्रा से नीचे किसी सुरक्षित जगह पहुँचने की कोशिश करें। आपको सड़क पर छोटे बड़े नाले और पिघलती हुई बर्फ़ की धाराओं को पार करना होगा इसलिए यदि आप पार करने से पहले जूते और मोज़े को उतार लें ताकी वो भीगे ना ।

तो चलिए अब सफ़र करते हैं। 28 मई 2017 को शाम को आठ बजे मैं अपनी साइकिल रैले टेरेन -10, एक छोटा तम्बू, एक स्लीपिंग बैग, एक फर्स्ट-एड किट और साइकिल के लिए एक टूल किट लेकर सारा सामान और साइकिल बस की छत पर रखकर चंडीगढ़ से भुंतर के लिए बस में चढ़ गया। मैं 29 तारीख को सुबह 4 बजे भुंतर पहुँचा और लगभग 5 बजे मैंने कसोल के लिए साइकिल चलाना शुरू कर दिया ।तब तक मनाली-लेह राजमार्ग नहीं खोला गया था इसलिए मैंने कसोल में कुछ दिन बिताने के बारे में सोचा और फिर अगले दो तीन दिन वहाँ अच्छा समय बिताया।पहली रात पार्वती नदी के किनारे जंगल में तम्बू लगा के सोया और अगले दिन सुबह कसोल में नाश्ता करके मणिकरण होते हुए शाम तक मैं तोष पहुँचा। तोष कसोल से तक़रीबन छबीस किलोमीटर आगे एक छोटा और प्यारा सा गाँव है। गाँव से थोड़ा आगे निकल कर पहाड़ी पर दो तीन छोटे छोटे टेंट लगे थे जिनमे से एक मैंने ले लिया और खाना खा कर उसमें सो गया। तो ऐसे ही अगला दिन भी गुज़र गया और मनाली -लेह रास्ते के खुलने की मुझे कोई ख़बर पता नहीं चली तो मैंने सोचा सफ़र शुरू करते हैं जहाँ तक रास्ता खुला है वहाँ तक तो चलते हैं ।

कसोल से 17-मील
1 जून को सुबह कसोल से मनाली के लिए चल पड़ा। मेरी योजना दिन के अंत तक मनाली पहुंचने की थी। दिन भर पहले पार्वती नदी और फिर भुंतर से मनाली के लिए ब्यास नदी के किनारे किनारे सवारी की। यह पहाड़ों में साइकिल चलाने का मेरा पहला अनुभव था और वो एक थका देने वाला दिन था क्योंकी मैंने मनाली से कुछ ही किलोमीटर पहले 17-मील नामक गाँव में रुकने से पहले लगभग 75 किलोमीटर की दूरी तय की थी तो उस रात वहीं रुकने का फैसला किया। मैंने एक परिवार से गुज़ारिश की और उन्होंने मुझे अपने बगीचे में तम्बू लगाने की अनुमति दी, वहाँ मैं एक जिज्ञासु बच्चे से मिला जो मेरी यात्रा और जीवन को लेकर काफ़ी उत्सुकता से बातें कर रहा था, उसके साथ अच्छा समय बीता बातचीत करते हुए फिर रात का भोजन किया और सोने चला गया।


17-मील से सोलांग
अगली सुबह मैं उठा और ब्यास नदी का एक अद्भुत दृश्य सामने था, बहुत साफ और ठंडा पानी बह रहा था, हल्की हल्की ठंड थी और पहाड़ों के ऊपर सुहावनी धूप निकल रही थी।मैंने अपने तम्बू और बैग को पैक किया और मनाली के लिए रवाना हो गया। मनाली से ठीक पहले मुझे एक गर्म पानी का कुंड मिला, वहाँ नहाने के लिए रुका और दोपहर तक मनाली पहुँच गया। वहाँ मैं कुछ देर माल रोड बाज़ार में घूमता रहा, कुछ खरीदारी की और 3 बजे तक मैंने सोलाँग घाटी के लिए प्रस्थान करने का फैसला किया क्योंकि मैं लेह जाने से पहले एक दिन का आराम करना चाहता था।इसलिए मैं लगभग 3:30 बजे निकल गया और अंधेरा होने पर सोलाँग पहुंचा, टेंट लगाने के लिए जगह नहीं मिली, रात का भोजन किया और रात बिताने के लिए एक होटल खोजने के लिए एक किलोमीटर नीच आया और एक होटेल में कमरा मिल गया।



सोलांग से मढ़ी
अगले दिन मैं थोड़ा देर से उठा क्योंकि मेरी आराम करने की योजना थी, लेकिन 12 के आसपास मुझे होटल का कमरा ख़ाली करना पड़ा और आराम की योजना को रद्द करना पड़ा। एक घंटे के भीतर मैं मढ़ी के लिए रवाना हो गया। मेरी ताकत की असली परीक्षा कल मनाली से निकलने के बाद ही शुरू हो गई थी और रोहतांग तक रास्ता उच्चतर और मुश्किल हो रहा था। मनाली से मढ़ी तक 35 किलोमीटर लंबी चढ़ाई है। गुलाबा के बाद सड़क संकरी हो जाती है इसलिए आपको कुछ जगहों पर ट्रैफिक जाम और टूटी सड़क का सामना करना पड़ सकता है। गुलाबा से ठीक पहले एक छोटा सा गाँव है कोठी जहाँ आप दोपहर का भोजन कर सकते हैं क्योंकि उसके बाद आपको रास्ते में कुछ स्नैक-वैन को छोड़कर मढ़ी तक कोई ढाबा नहीं मिलेगा। जैसे जैसे ऊपर जाते हैं आप और अपने चारों ओर का दृश्य देखते हैं तो वो ऊँचाई के साथ और अधिक रोमांचक और सुंदर होता जाता है। धीरे धीरे साइकिल चलाते, ब्रेक लेते आखिरकार शाम 7:30 बजे मैं मढ़ी पहुँचा। वहाँ मैंने रात के खाने से पहले चाय पी और उसी ढाबे पर रात के ठहरने की व्यवस्था के बारे में पूछताछ की। मढ़ी 5-7 ढाबों की एक छोटी बस्ती है जो भोजन और रात को ठहरने की सुविधा प्रदान करती है। यहां रात होते ही मौसम ठंडा हो जाता है और सुबह के समय तेज ठंडी हवा चलती है जिससे आप परेशान हो सकते हैं। यहाँ मुझे असली ठंड महसूस हुई, तापमान बहुत कम था और आधी रात तक ठंडी हवा तेज़ रफ़्तार से बहने लगी। मैं आधी रात के बाद हवा के कारण ठीक से सो नहीं सका और अगली सुबह मैंने अपने टेंट, स्लीपिंग बैग और टेंट के लिए प्लास्टिक कवर को वहीं ढाबे पर छोड़ने का फैसला किया।


मढ़ी से सिस्सु
अगली सुबह मैंने भरपेट नाश्ता किया क्योंकि उन्होंने मुझे बताया कि खोखसर तक कोई दुकान या खाने का कोना नहीं होगा। रोहतांग के लिए 16 किमी की चढ़ाई के लिए 9:30 बजे मैं मढ़ी से निकल पड़ा। लगभग एक बजे रोहताँग पहुँचा जहाँ सैलानियों हुजुम उमड़ा हुआ था। रोहतांग के बाद अगले 20 किमी तक सबसे खराब और पथरीला रास्ता था जहाँ अब एक अच्छी शानदार सड़क बन चुकी है। तो अब रोहताँग के बाद आपको एक छोटे से गांव खोखसर तक सिर्फ़ब्रेक पर अपने हाथ रखने होंगे। खोकसर में आप भोजन और कुछ आराम कर सकते हैं। वहाँ से आपको सिस्सु तक रोहतांग घाटी के बीचों बीच चंद्रा नदी के किनारे किनारे सफ़र करना है। सिस्सू एक सुंदर गाँव है जिसमें एक झील है और कुछ नदी के किनारे पर तम्बू भी लगे हैं, यदि आप थोड़ा जल्दी पहुँचते हैं तो आप बिस्तर / टेंट बुक कर सकते हैं और बिस्तर पर जाने से पहले झील या नदी के किनारे बैठ कर शाम का आनंद ले सकते हैं। तो मैं दोपहर 3 बजे खोखसर में भोजन करके 3:30 बजे सिस्सू के लिए रवाना हुआ। मैं शाम 5 बजे के करीब सिसु पहुंचा, मेरी साइकिल के गियर और चेन में कुछ दिक्कत लग रही थी, इसलिए इसे एक मैकेनिक की दुकान पर चेक कराया, पास में ही एक टेंट लिया और खाना खा कर सो गया।


सिस्सु से जिस्पा
अगली सुबह 7:30 बजे नाश्ता किया और 9 बजे के करीब जिस्पा के लिए निकल गया।आज मेरे पास सिसु से लगभग 62 किलोमीटर दूर जिस्पा तक पहुंचने का लक्ष्य था। यह सुंदर घाटी में छोटे गाँवों और खेतों के बीचों बीच एक ख़ूबसूरत रास्ता है। एक जगह बीआरओ कर्मी एक टूटे हुए रास्ते पर काम कर रहे थे। छोटे छोटे खेत बने थे जिनमे लोग पानी लगा रहे थे और काम कर रहे थे। इन्हीं ख़ूबसूरत नज़ारों के बीच से होता हुआ मैं तांडी पुल पर पहुँचा।ये पुल दो चीजों की वजह से इस राजमार्ग पर एक महत्वपूर्ण स्थान है- सबसे पहले आप यहां दो नदियों चंद्रा और भागा का संगम देखते हैं, और दोनों मिलकर आगे चलकर झेलम नामक एक प्रसिद्ध नदी बन जाती है, दूसरा कारण यह है कि यहाँ के बाद अगला पेट्रोल स्टेशन 360 किलोमीटर आगे है लद्दाख में इसलिए बाइकर्स यहां से रास्ते के लिए पर्याप्त ईंधन प्राप्त करना सुनिश्चित करते हैं।आप यहां पर कुछ चाय-नाश्ते और दोपहर का भोजन कर शाम तक जिस्पा पहुंच सकते हैं। जिस्पा, भागा नदी के किनारे बसा एक खूबसूरत पर्यटक गाँव है। यहां आप पूरी तरह से शांत ठंड और प्राकृतिक वातावरण में होते हैं और आपको कई शिविर स्थल मिलेंगे, जहां आप रात के लिए रुक सकते हैं या आप गांव के अंत में पर्वतारोहण और संबद्ध खेल छात्रावास में सस्ते मूल्य पर एक कमरा या बेड ले सकते हैं। जिस्पा में मैं पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान में रहा, वे यात्रियों को रात्रि प्रवास की डोरमेट्री सुविधा प्रदान करते हैं। इस हाईवे पर लद्दाख तक जिस्पा आखिरी स्थापित गांव है, बिजली और मोबाइल नेटवर्क के लिए भी अंतिम स्थान है, केवल बीएसएनएल का नेटवर्क होता है और वह भी कमजोर और अनिश्चित है। लेकिन मेरे पास कोई बीएसएनएल नहीं था, इसलिए मैं पहले से ही नेटवर्क से बाहर था और अगले 7 दिनों तक ऐसा ही रहेने वाला था।

जिस्पा से जिंग जिंग बार
पिछली रात मैंने सुबह जल्दी उठकर निकलने की योजना बनाई क्योंकि मुझे सरचू पहुंचना था और इससे पहले बारालाचा ला पास से गुजरना था जो 4900 मीटर ऊँचा है। लेकिन मेरी योजनाओं के अनुसार कुछ भी नहीं हुआ लेकिन मैं निराश नहीं हुआ क्योंकि ऐसी स्थितियों में आप कुछ नहीं कर सकते और आपको हालात के मुताबिक़ चलना पड़ता है। सुबह बारिश हो रही थी इसलिए थोड़ी देर इंतजार करना पड़ा और लगभग 9 बजे सफ़र शुरू किया। जिस्पा से 6 किमी दूर दारचा को पार करने के बाद, मुझे खराब सड़क और चढ़ाई के कारण संघर्ष करना पड़ा, फिर ठंडी हवा और ज़िंग ज़िंग बार से कुछ किलोमीटर पहले फिर बरसात होने लग गयी। लगभग दो घंटे के लिए एक ढाबे पर रुकना पड़ा, मुझे अपनी योजना बदलनी पड़ी और मैंने रात को रुकने के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी क्योंकि समय पहले से ही शाम 4 बजे का था और सरचू अभी भी 50 किलोमीटर से अधिक था इसलिए मुझे पता चला वहाँ से लगभग 6 किलोमीटर दूर जिंग जिंग बार पड़ता है जहाँ रात में रुकने का इंतज़ाम हो सकता था। अंत में मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ मैंने पीस कैफ़े देखा और उसमें दो सौ रुपए में एक बिस्तर लिया और वहाँ रात बिताई। यह 14300 फीट की ऊँचाई पर है और रातहोते होते तापमान घटकर शून्य हो गया, हवा भी तेज़ी से बह रही थी तो एक बार रज़ाई कम्बल ओढ़ने के बाद मैंने अपना बिस्तर नहीं छोड़ा। ढाबे वाला भला आदमी था उसने बिस्तर में ही चाय और दाल चावल दे दिए।

थोड़ी देर में चार लोग (नेपाल, जर्मनी, फ्रांस और कनाडा में से प्रत्येक) वहां आए जो की बाइक पर थे।उन्होंने वहाँ चाय नाश्ता किया हमने कुछ बातें की और अंधेरा होते होते वो अपनी अपनी बाईक लेकर निकल गए। वो भी लेह जा रहे थे और उनके जाते ही मैं ये सोच के हैरान हो रहा था के इस रात में वो कैसे जाएँगे। लगभग रात के नौ बजे वो चारों बुरी तरह ठिठुरते हुए भीगे हुए जुते और जुराबों के साथ वापस आए, पुछने पर बताया के वहाँ से एक किलोमीटर आगे रोड के ऊपर से एक नाला बह रहा है जिसे पार करते वक़्त उनकी दो बाईक ख़राब हो गयी फिर जैसे तैसे करके नाले के बाहर उन्हें खड़ी कर के वो वापस पैदल उस ढाबे तक आए । अब और कोई चारा नहीं था उनके पास तो बातें करते करते थोड़ी देर में हम लोग सो गए।


जिंग जिंग बार से सरचू
अगली सुबह जब उठा तो यूँ लगा रात में किसी ने उठा के मुझे साईबेरिया में ला छोड़ा हो । चारों तरफ़ बर्फ़ की सफ़ेद चादर बिछी थी, हल्की हल्की बर्फ़बारी भी हो रही थी, ये मेरे जीवन में पहली बार बर्फ़ गिरती देख रहा था मैं, सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था, दुनिया के शोर गुल से दूर हिमालय की गोद में प्रकृति का वो मनमोहक नज़ारा किसी स्वर्ग से कम नहीं था । हिमपात गिर रहा था, हालांकि भारी नहीं था, तापमान शून्य अनुमान के आसपास था और लगभग 10:30 बजे हम सभी प्रस्थान करने के लिए तैयार थे। मुझे लगभग 16000 फीट की ऊँचाई पर 17 किलोमीटर ऊपर चढ़ना था। यह हमेशा रोहताँग से भी कठिन हिस्सा था पहाड़ बर्फ से ढँके हुए थे और मौसम बेहद ठंडा था। बारालाचा के रास्ते में सड़क के दोनों ओर लगभग 10 फीट बर्फ होगी। आप लगभग जमी हुई सूरज ताल झील को देखेंगे जहाँ से भागा नदी निकलती है।यह बारालाचा तक का लगभग दस किलोमीटर का रास्ता इस राजमार्ग पर मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। मुझे 3-4 घंटे लगे और ठीक बारालाचा के पीक के पत्थर के पास मैं अपनी यात्रा पर पहले साइकिल चालक से मिला, लगभग 60 साल का एक जर्मन आदमी, वह कारगिल से आ रहा था। हमने कुछ बातें की, फ़ोटो लिए और चूँकि मौसम ख़राब था तो अपनी अपनी दिशा में आगे बढ़ गए। बारलाचा ला पार करने के बाद मैं भरतपुर पहुँचा, वहाँ 3-4 टेंटों की एक बस्ती थी, जिसमें मुझे खाने के लिए कुछ दाल चावल मिल गए, और वहीं मैं कैथरीन, एक ब्रिटिश लड़की, से मिला जो मेरी तरह साईकिल पर लेह जा रही थी, इसलिए दूसरी साइकिल सवार। उस दिन के लिए हमारी मंजिल एक ही थी सरचू, इसलिए हमने 25 किलोमीटर तक एक साथ सवारी की, जिसमें से पहले 10-15 किलोमीटर बहुत खराब थे, लेकिन आखिरी 10 किलोमीटर उतने ही ख़ूबसूरत थे। सरचू लद्दाख का प्रवेश द्वार है और एक कैंपिंग सेटलमेंट है, यहां आपको ठंड और ऊंचाई की वजह से होने वाली तकलीफ़ महसूस होगी, मुख्य रूप से हल्का सिरदर्द, इसलिए बेहतर होगा कि आप अपना बिस्तर लें, अपना खाना खाएं, दवा लें और जल्दी सो जाएं। हमने भी ऐसा ही किया ।


सरचू से व्हिस्की नाला
आज सुबह मुझे जल्दी निकलना पड़ा क्योंकि मुझे लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर पांग पहुँचना था, कैथरीन मुझसे क़रीब एक घंटा पहले निकली और मैं लगभग 7:30 बजे रवाना हुआ। पहले 25 किलोमीटर काफी अच्छे थे और मैंने उन्हें 9:15 तक कवर किया। लेकिन इसके बाद मेरी यात्रा जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ। पहले मुझे 21 गाता लूप से होते हुए उपर चढ़ना पड़ा और उसके बाद नाकी ला दर्रा के लिए चढ़ाई शुरू की। यह सबसे कठिन हिस्सा था क्योंकि मैंने कई बार जीवित रहने के लिए संघर्ष किया। मेरे पास पानी ख़त्म हो गया था और मुझे चढ़ना मुश्किल हो रहा था। मैंने उन सभी सरवाईवल फिल्मों को याद करना शुरू कर दिया जो मैंने देखी हुई थी।बाक़ी दिनों में मैं पिघलती बर्फ़ या किसी झरने से पानी भर लेता था मगर उस दिन चारों तरफ़ सिर्फ़ सूखे पहाड़ों के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। दिलचस्प बात ये है के उसी दिन मेरी एक दोस्त की शादी हो रही थी जिसका मुझे निमंत्रण भी मिला था और जिस दिन मुझे मिठाइयाँ और लज़ीज़ खाना मिलना था मैंने ऐसा रास्ता चुना हुआ था जहाँ बाक़ी दुनिया दूर ऊँचे बंजर पहाड़ों में मैं दो घूँट पानी के लिए तरस रहा था ।मगर जुनून चीज़ ही ऐसी है कोई क्या करे । अंत में 5 घंटे के बाद एक पर्यटक वैन जो लेह से आ रही थी मेरे सामने आकर रुकी क्यूँकि वे एक अकेले साइकिल चालक को उस बंजर परिदृश्य में संघर्ष करते देख चकित थे, उन्होंने मेरे बारे में पूछा मगर मैंने उनसे मुझे पानी पिलाने को कहा। उन्होंने मुझे पानी के साथ एक सैंडविच भी दिया और केवल मुझे पता है कि वो कितना स्वादिष्ट था और पानी मेरे लिए अमृत साबित हुआ। उसके बाद भी मुझे दो घंटे और चलना पड़ा। नाकी ला के बाद मुझे घाटी में कुछ टेंट मिले वहां कुछ खाना खाया थोड़ा आराम किया और पांग पहुंचने की योजना को रद्द किया। ज़्यादातर वक़्त बिस्तर में ही रहा, शाम को जल्दी खाना खा कर सो गया।



व्हिस्की नाला से डिब्रिंग
अगली सुबह मैं बहुत सिरदर्द के साथ 6 बजे उठा, खुद को चलने के लिए तैयार किया और 7 बजे रवाना हुआ। सबसे पहले मुझे लुचुंग ला पर चढ़ना था, इसलिए यह इतना थका देने वाला था क्यूँकि आगे पांग के लिए सड़क वास्तव में बहुत खराब स्थिति में थी। एक बहुत खराब सड़क मगर आप एक अलग परिदृश्य में उतरेंगे जहाँ आपको पहाड़ों का एक अलग पैटर्न और बदलता हुआ रंग दिखाई देगा। लगभग 11 या 11:15 बजे पांग पहुँचा और दोपहर का भोजन किया और आगे चल पड़ा। चार किलोमीटर तक चढ़ने के बाद मैं सबसे अद्भुत परिदृश्य मूर के मैदानों पर पहुंचा जो 40 किलोमीटर से अधिक लंबा इस रास्ते का सबसे ख़ूबसूरत क्षेत्र है। यह मनाली-लेह राजमार्ग पर मेरा सबसे पसंदीदा परिदृश्य है, यह 15 हज़ार फ़ीट से अधिक की ऊँचाई पर 45 किलोमीटर लम्बा मैदानी इलाका है। ये मैदान पांग के बाद 3-4 किलोमीटर की दूरी पर शुरू होते हैं और ये लगभग 7-8 किलोमीटर तक चौड़े फैले हुए हैं जब बर्फ पिघल जाती है और गर्मियों में चारों तरफ घास होती है, तो आप मैदानों में चरते हुए चंगथांग (लद्दाख) के खानाबदोश समुदाय के भेड़ों के झुंडों को देख सकते हैं।वहाँ इन मैदानों के अंत में डेब्रिंग के पास आप कुछ अस्थायी डेरा डाले हुए ढाबे पा सकते हैं जहां आप रात को खाना खाकर सो सकते हैं और मेरे पास इन मैदानों की रातों का वर्णन करने के लिए शब्द नहीं हैं।


मैं करीब 4:30 बजे, तांगलांग ला से 24 किलोमीटर पहले एक कैंपिंग ढाबे पर पहुंचा। मैंने वहां रहने का फैसला किया और शुक्र है कि मैं एक तीन साल की प्यारी सी लड़की लामो से मिला, जो अगली सुबह तक दोस्त बन गई। वह इतनी शरारती और प्यारी है कि अगली सुबह उसे अलविदा कहना मुश्किल था। डिब्रिंग से पहले मैंने एक आदिवासी परिवार को भी देखा, जिस सड़क पर मैं गया था, उससे कुछ मीटर की दूरी पर, उनसे मिला, उनके टेंट हाउस में उन्होंने एक चाय के लिए बुलाया और उनके साथ एक चाय पी, उनका एक प्यारा सा बेटा था एक साल का होगा उस वक़्त, 3 लोगों का छोटा सा परिवार था उनका।कुल मिलाकर वहाँ काफ़ी अच्छा समय बीता इतनी ख़ूबसूरत जगह थी वो।

डिब्रिंग से रूम्से
डिब्रिंग में सुबह अच्छी थी,। ठंडा मौसम था और उठते ही मैंने जो पहला चेहरा देखा वह लामो का था। हमारे पास मेरे तैयार होने तक का एक घंटे का अच्छा समय था, उसके साथ कुछ तस्वीरें की और दुखी मन से मुझे उसे अलविदा कहना पड़ा, मुझे पता है कि वह भी थी मेरे जाने से दुखी। (लेह पहुँचने के बाद मैंने उन तस्वीरों की दो हार्ड कोपि निकलवाई, उसके लिए कुछ खिलौने और चोकलेट ख़रीदे जो वापिस आते वक़्त उनके टेंट के पास रिक्वेस्ट कर के बस वाले से दो मिनट के लिए बस रुकवाई और जैसे ही मैं बस से उतरा और आवाज़ लगाई लामो तो वही हँसता हुआ ठंड से लाल चेहरा दौड़ता हुआ आया और वो तस्वीरें और चोकलेट वाला लिफ़ाफ़ा झट से मेरे हाथ से ले कर उसी फुर्ती से टेंट में भाग गया )

मेरी योजना उप्शी तक पहुँचने की थी, जो लेह से 50 किमी पहले एक जगह थी, लेकिन तंगलांग ला की चढ़ाई ने मुझे नाकी ला के लिए चढ़ाई की याद दिला दी।मैं 17500 फीट की ऊँचाई पर चढ़ रहा था और ऑक्सीजन इतनी कम थी कि मुझे हर कुछ मीटर पर रुकना पड़ता था। मुझे पाँच घंटे लगे। शुक्र है कि मुझे सबसे ऊपर एक चाय की स्टाल मिल गई। वहीं बर्फबारी शुरू हो गई और वहां जाम भी लग गया और आखिरकार जब मुझे रास्ता साफ मिला तो मैं नीचे आ रहा था लेकिन तापमान और ठंडी हवा से संघर्ष करना पड़ा। लगभग डेढ़ बजे मैं रूम्से पहुँचा जो जिस्पा के बाद पहला गाँव था।
वहाँ पहुंचने के बाद मैंने एक चाय पी और दो बजे हल्की बर्फ़बारी शुरू हुई और मौसम फिर ख़राब हो गया मैंने स्थितियों का अवलोकन किया और रात के लिए वहीं रुकने का फैसला किया।

रूम्से से लेह
अगला दिन मेरे लिए बड़ा और महत्वपूर्ण था। सुबह जल्दी उठकर तैयार हुआ और लगभग 7 बजे लेह के लिए रवाना हुआ। पहला डेढ़ घंटा इतना ठंडा था कि मुझे चाय के लिए जल्द ही दो बार रुकना पड़ा। उपशी के बाद मुझे लगा कि अब अच्छी सवारी होगी लेकिन नहीं, ठंडी हवा और रिमझिम बारिश के बीच मौसम की कुछ अन्य योजनाएं थीं। फिर मैं एक और चाय के लिए रुक गया और कुछ किलोमीटर के बाद एक महल (शे महल) देखने के लिए रुक गया। धीरे धीरे इत्मीनान से मैं आखिरकार 11 दिनों की कठिन यात्रा के बाद, लगभग 2:30 बजे लेह पहुँचा।यह एक सपना था जिसे मैंने यात्रा शुरू करने से ठीक एक महीने पहले देखा था, मेरे परिवार सहित कुछ और लोगों ने मुझे पागल घोषित कर दिया था, कुछ ने कोशिश की और इस उद्यम के लिए विशेष रूप से अकेले नहीं जाने का सुझाव दिया, लेकिन आप जानते हैं कि तब पागल और जुनूनी लोगों का दिमाग कैसे काम करता है । मेरा ख़ुद पर कोई ज़ोर नहीं चला और मैं निकल गया और आज 11 दिनों की एक बेहद चुनौतीपूर्ण यात्रा, साईकिल से 555 किलोमीटर के सफ़र बाद, ख़राब मौसम, ठंडी हवा, बारिश, बर्फबारी, पांच उच्चतम दर्रे, 14000 से लेकर 17600 तक की ऊँचाई शून्य डिग्री से भी नीचे तापमान पर सांस लेने के लिए जूझते हुए एक अविश्वसनीय सपने को जीते हुए अंततः मैं लेह में था। एक अजीब सुकून ने मुझे घेर लिया और मन में असीम शांति महसूस हो रही थी। वो यात्रा मेरे मुसाफ़िर बनने की असली शुरुआत थी।



बहुत अच्छा लिखा भाई आपने, लद्दाख़ की यादें ताज़ा कर दी ।इस बार मैं लद्दाख़ नही जा पाया पार आपका सफ़रनामा पढ़कर ऐसा लगा ,कि मैं घूम आया,
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भाई थोड़ा सब्र बस , उम्मीद है jald ही firसे जन्नत की सैर करेंगे 😍🚵♂️
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परिवार में कुछ लोग अभी भी तुझे पागल समझते हैं 😆
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मुझे पता है भाई और मुझे अब कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ता, बाक़ी पागलपन तो उन्होंने देखा ही नहीं ये तो बस शुरुआत है 😂
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All these efforts make the aspect of living life worthwhile.
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कल खेल में हम हों ना हों
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा 💕
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Bahot hi badhiya….Did a virtual tour with you! Amazing shots.
https://nanchi.blog/
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Thank you 😊 🙏
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Nice Sushil bhai aapne mujhe ghar baithe leh. Laddakh ki sair kra di Thank you
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😊🙏🚵♂️
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भाई अभी तक केवल आधा वलोग पढ़ा है पर ऐसा महसूस हुआ की जीवन में बोहोत कुछ करने को है ।
नोट :- जीने के लिए यही एक जीवन है ।
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भाई ये साईकिल से मेरी पहली यंत्र थी तीन साल पहले और इस वक़्त मैं एक साल से साईकिल पर भारत यात्रा पर हुँ, उम्मीद है अब आप पुरा बलोग भी पढ़ेंगे शायद शेयर भी करें अगर लदाख जाने का सपना है और दुआ करता हुँ जीतना जीवन me करना बाक़ी है आपके आप ज़रूर हासिल करें 😊🙏🚵♂️
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Bohot hi badhiya likha h ravinder bhai….👌👌👍👍
Yaad tazza kr di Leh ki 😍😍
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Thank you bhai 😍 aakhir me bas yadein hi reh jayegi
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Can we go by a single speed cycle ?
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You can go but I would suggest you to go on a multiple gear bicycle
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वाह बहुत सुंदर संस्मरण लिखा है
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शुक्रिया भाई , कृपया इसे शेयर भी करें 😊🙏🚵♂️
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Bahut bahut khub 👏👏👏
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शुक्रिया 😊
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मे पडते पडते मे बुल गया कि मे ब्लोग पड रहा हु ऐसा लग रहा था में सफर कर रहा हुं मैं तो कभी गया नहीं लेकिन आपकी लेखनी से ऐसा लगा मे जा रहा हुं आपको बोहत बोहत शुभकामना
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बहुत बहुत शुक्रिया आपका 😊🙏 दुआ करता हुँ आपको भी जाने का मौक़ा मिले 🚵♂️
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बहुत सुंदर यात्रा वृत्तान्त, पढ़कर मजा या गया| मैं दो साल रहा लेह में पर इतना घूम नहीं पाया| अच्छा लगा | धन्यवाद
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शुक्रिया सर , अच्छा लगा तो शेयर भी करना आगे 🙏😊 आगे और भी लिखते और शेयर करते रहेंगे 🙏
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जी
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